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दानलीला / भाग - 2 / सुंदरलाल शर्मा

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दोहा
करधन कंवरपटा पहिर, रेंगत हांथी चाल॥
जेमा ओरमत जात हैं, मोती हीरा लाल॥

चौपाई
चांदीके सूंता झमकाये। गोदना ठांव ठांव गोदवाये॥
दुलरी तिलरी कटवा मोहैं। औ कदमाहीं सुंर्रा सोहैं॥
पुतरी अउर जुगजुगी माला। रूपस मुंगिया पोत बिशाला॥
हीरा लाल जड़ाये मुंदरी। सब झन चक-चक पहिरे अंगरी॥
पहिरे परछैंहा देवराही। छिनी अंगुरिया-अउ अंगुठाही॥
खोटिला तितरी ढार बिराजैं। खिलवां-तरकी कानन राजैं॥
तेखर खाले झुमका झूलै। देखत-डउकन-के दिल भूलै॥
नाकन में सुन्दर नथ हालै। नहि कोउ अउठ तोला-के-खालै॥
कोनो तिरैंया पांव रचाये। लाल महाउर कोनो देवाये॥
चुटकी चुटका गोड़ सुहावै। चुटचुट चुटचुट बाजत जावै॥
कोनो अनवट बिछिया दोनो। दंग दंग ले छुच्छा-हैं-कोनो॥
रांड़ी समझैं पांव निहारैं। ऊपर एंहवांती मुंह मारैं॥
दांतन पाती लाख लगाये। कोनो मीसी ला झमकाये॥
एक एक के धरे हाथ हैं। गिजगिज गिजगिज करत जात हैं॥
एक दोय हो तो-कहि जावै। अटाटूट ला-कउन बतावै॥
पहिरे लूगा लाली पिंयरा। देखतमें मोहत हैं जियरा॥
डोरिया पातल सारि अंचरहा। मेघी चुनरी कोर-लपरहा॥
मुंडा ढिंक के सोरा हंत्थी। पहिरे रेंगत हैं एक संत्‍थी॥
हलबिन पाटा तिरनी मोरे। कोनो थंड़ अंचरा हैं जोरे॥
कोनो कोनो डेरी खंधेला। कोनो लिये जेवनी केला॥
लड़ि‍हा-सूरज-के-रफ-पावै। चकमक चकमक चमकत जावै॥
औ पहिरे रेशमाही चोली। करत जात हैं ठोली बोली॥
चिमटैं-मसकैं भरे जवानी। होत जात हैं गिद्द मसानी॥
कोनो तो मुड़ उघरा जावैं। छाती ओढ़ना कोनो गिरावैं॥
कोनो-के लुगरा खिंच लेवै। गुदगुदाय कोनो ला-देवैं॥
नथ उठाय के पाछू-झूकैं। औ फेर कोनो पिच्चले थूंकैं॥
कोनो हांसैं कोनो हंसावैं। टेंड़गा देखैं मुहं बिचकावैं॥

दोहा
पॅंडरी पॅंडरी देंह के, रूपस सबे अघात।
श्याम मिले के खुशी में, फसफसात हैं जात॥
भिरिन कछोरा सबो झन, बस्ती बाहिर आय।
उघरे उघरे जांघ हर, केंरा असन देखाय॥

चौपाई
करे सवांग सबो दूरी मन। चलैं छनाक छनाक सबो-झन॥
कर-हियाव कोनो गोंठियावैं। डर पोकनी मन बीच डेरावैं॥
उरभट भेंट कहूं जो-होई। तब तो कैसे करबो गोई॥
संगी लिये अगाड़ी आहैं। मोहन ठौंका दही नगाहैं॥
कोनो कह पकर हमलेबो। लाल गाल में गुलचा देबो॥
आगू कर लेबो मन भाई। फेर लेजाबो जसुदा ठांई॥
कोनो कुछू करौ तुम कोई। हरि ला जो पहुंचातेंव गोई॥
दौंरत पांव बीच गिर जातेंव। देखथ रहितेंव नयन जुड़ातेंव॥
एको घरी छोंड़तेंव नाहीं। रहितेंव बैठ-न करतेंव कांही॥
माखन गोरस दही खवातेंव। किरिया! तोर कहूं जो पातेंव॥
ऐसन ऐसन करत बिचारा। बिन्द्राबन में पहुंचिन झारा॥
ओ कोती कान्हा हैं ठाड़े। लइका मन-ला-लिये अगाड़े॥
माथे मौर लहरिया पागा। खौरे चन्दन करे संवागा॥
पहिरे हैं मजुराही साजू। ओरमे हवै फूंदना बाजू॥
खुल के पीताम्बरी सुहावैं। लौड़ी देखत लोग मोहावैं॥
भदंई अउर पैंजनी सोहै। कहै सुंदरइ ऐसन को-है॥
मोहन देख परत हैं ऐसे। खासा चेलिक डौका जैसे॥
मुसकी ढारत झारत रज-कन। बोले लगिन श्याम-संगी सन॥
एक मनसुभा है रे भाई! आज चलो दहि दूध नगाई॥

दोहा
मन तुम्हार जो आतिस, खातेन लेवना-लूट॥
लेतेन यार जगात सब, रौताइन-के जूट॥

चौपाई
सुनत कान लुटब दहि दूदे। हो! हो! करके लइका कूदे॥
ठौंका बनि है हरि संग जाबो। चलौ अरे! दहि माखन खाबो॥
ऐसन कहि कहि कूदैं नाचैं। एक बतावैं एके टांचैं॥
कहे श्याम तब सुनौ रे भाई। सब झन चढ़ौ रूखमें जाई॥
तुम ला जब मैं करौं इशारा। कूद-कूद आहौ तब झारा॥
ऐसे हंस के कृष्ण कहि‍न जब। येते वोते सखा चढ़िन सब॥
आगू ठाढ़ भइन हरि जाके। लौड़ी लिये हांथ परसा के॥
वोती ले आइन रौताइन। श्याम देख डगडग ले पाइन॥
झरफर सबो कछोरा छोरिन। ढांकिन मूड़-बांह ला तोपिन॥
ठोठक गइन सब हरि ला देखे। कोंचकन लगिन एक ला एके॥
रेंगे बर आगूमें होके। परिस हियाव नहीं कोनो के॥
ले दे-के सब चलिन अगारी। सब ले चतुरी राधा प्यारी॥
दू-पग-चलैं ठोठक फिर जावैं। मन में मया उपर डर खावैं॥

दोहा
साम्हू-में सूंटी लिये, ठाढ़ भइन हरि आय।
आगू मोर जगात दे, पाछू पाहौ जाय॥

चौपाई
रोज रोज चोरी कर जावौ। मोला नहीं जगात पटावौ॥
ठौंका आज पकर म पायेंव। जातेव भाग तैसने आयेंव॥
तुमला आज जान तब देहौं। जब सब दिन के सेती लेहौं॥
रोज बिहिनिया मथुरा जाथौ। रात भये ले गोकुल आथौ॥
भल मानुखके बेटी होके। काम करत हौ चोर पनेके॥
रौताइन सब सुनत-रिसाइन। कब ले श्याम साव बन-आइन॥
चोरी करत उमर सब मेले। भयेव बड़े मोहन छोटे ले॥
तउन आज ऐसन बोलत हौ। चोट्टी कहि हम ला ठोलत हौ॥
चोर तुम्हारे ऐल्हे पैल्हे। अउ तुम चोर चोरके चेले॥
काल चोराय जो माखन खाये। आजेच मोहन गयेव भुलाये॥
मूसर में जब बांधिस लाके। तब हम सबो छोड़ायेन जाके॥
काले रोयेव अभी भुलायेव। आजेच भोंग चन्द बन आयेव॥

दोहा
कंसराय के राजमें, करौ न ऐसन काम।
घुसड़ अभी जाहैं सबो, बनेव जगाती श्‍याम॥

चौपाई
चाहे भलुक मांगके खावौ। आवा! बइठौ! दोना लावौ!
नाम जगात बूंद नइ पाहौ। आखिर चुचवावत रहि जाहौ॥
ऐसे सुनत श्याम मुसकाइन। थोरिक आंखी मार बताइन॥
चिटिक मुलाजा नइ छू जाथै। मुह में कथौ जैसने आथै॥
हंड़ियाके मुंह में परई दै। मनखे के मुंहमें का सी-दै?॥
मात गये हौ सब मोटियारी। नहिं खियाल मस्ती में भारी॥
आंय बांय मनमुखी बकत हौ। भूत धरे अस बात करत हौ॥
फोकट कौन जीभ पिर वावै। माछी मारै हाथ बसावै॥
जो मुंह आहै तउन बताहौ। दान दिये बिन जान-न पाहौ॥
आव सबे डूमर कस किरवा। का जानौ? तुम दूसर बिरवा॥
एक कंस ला तुम सुन पायेव। आपन भर औखाद बतायेव॥
टेटका के पहुंचान कहां ले?। भांड़ी बारी तीर जहां ले॥