भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दानलीला / भाग - 4 / सुंदरलाल शर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:31, 13 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुंदरलाल शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दोहा
अजगुत अजगुत बातला, कोन सुनै मन मार।
कब के उपजे कोलिहा, कब देखे खरिहार?॥

चौपाई
गोकुलमें गोई? तउन खटावै। मारै मूड़ औ गोड़ बतावै॥
हमहूं खार खोजायेन सबरा। नइ पायेन मोहन अस-लबरा॥
जावौ मोहन तहां बतावौ। लबरा जहां बरोबर पावौ॥
कमरा के जो करेव बड़ाई। तौन सबो ठौंका है भाई !॥
यही ओढ़ के गाय चरावौ। येखरे घोंघी झड़ी लगावौ॥
यही ओढ़ के जाड़ बुतावौ। यही ओढ़ के घाम घलावौ॥
काम परे ले यही डसावौ। येखरे सींसा मूंड़ मड़ावौ॥
सबो रकम में ये जाथै बन। है कमरा तुम्हार पत राखन॥
आभा करके कहैं हरी-ला। तुम्हरे कमरा फबै तुम्हीला॥
करियै देह करिये कमरा हर। जोंड़ी दूनो मिलिस बरोबर॥
ऐसे कहि के सब रौताइन। तब रेंगे-बर पांव उठाइन॥
दंउर लाल आगू ला छेंकिन। जात कहां हौ दान दिए बिन?॥
 
दोहा
बिना जगात पटाये, नई पाहौ तुम जाय।
लेहौं अभिच नगाय मैं, जाहौ ठसक भुलाय॥

चौपाई
सुनके ऐसन बात कन्हाई। सब रौताइन गइन रिसाई॥
भले बाप के बेटा होबे। तो तैं नइ नगाय बस! लेबे॥
ऐसे कहि पेलिन अगुवा मन। चलिन छनाक २ सबो झन॥
दंउर श्‍याम पहुंचा-ला पकरिन। जाहौ कहां भला ..... मन॥
दइन हांथ झटकार जोरकर। मोहन गइन उड़ाय कोस भर॥
झुरमुट करिन श्याम फेर मांगिन। झुमटा झुमटा होवन लागिन॥
कजिया के ओखी-ला कर के। हरि-ला सबो पोटारैं धर-के॥
कोनो पकरें कोनो नगावैं। ऐसने ऐसने साध बुतावैं॥
तब मोहन सुंसरी ला पारिन। हलर हलर हालिन डारी मन॥
सुंसरी सुनिन जबे संगी मन। धमा धम्म कूदिन सब्‍बो झन॥
अक बकाय देखैं रौताइन। जैसे टीड़ी फांफा आइन॥
कोउ तुंतरू कोउ संख बजाइन। सुनके सब गोहार कौआइन॥

दोहा
कोनो हैं झालर धरे, कोनो हैं घड़ियाल॥
उत्ता धुर्रा ठोकैं, रन झांझर के चाल॥

चौपाई
पहिरे पटुका ला हैं कोनो। कोनो जंघिया चोलना दोनो॥
कोनो नीगोटा झमकाये। पूछेली ला हैं ओरमाये॥
कोनो टूरा पहिरे साजू। सुन्दर आड़ बन्द है बाजू॥
जतर कतर फुंदना ओरमाये। लकठा लकठा में लटकाये॥
ठांव ठांव-में गूंथे कौड़ी। धरे हांत-में ठेंगा लौड़ी॥
पीछू में खुमरी ला बांधे। परै देखाय ढाल अस खांधें॥
ओढ़े कमरा पंड़रा करिहा। झारा टूरा एक जंवरिहा॥
हो हो करके छेंक लइन तब। ग्वालिन संख उड़ाय गइन सब॥
हत्तुम्हार जौंहर हो जातिस। देबी दाई तुमला खातिस॥
ठौंका चमके हन सब्बो झन। डेरुवा दइन हवैं भडुवा मन॥
झझकत देखिन सबो सखा जब। हाहा! हाहा! हांस दइन सब॥
चिटिक डेरावौ झन भौजी मन। कोनो चोर पेंडारा नोहन॥
हरि के सांझ जगात मड़ावौ। सिट सिट करत घर तनी जावौ॥

दोहा
श्याम अकेल्‍ला जान के, रहे हौ पेलत जात॥
अब तो हम सब आ गयेन, करिहौ कउन जुगात?॥

चौपाई
चीन्ह लइन टूरा मन-ला जब। चर चर ले अङ्गरी फोरिन सब॥
कहां बसैया कहां रहैया?। आयेव भौजी बड़ा कहैया॥
तोर भाई ..... ला लातो। देखौं कैसन हवै देखा तो॥
अभी तोर भाई .....-के खेदवाथौं ..... ला जाके।
ऐसन सुनत सखा मुसकाइन। अंगरी मोहन तनी बताइन॥
अब दखे भाई ..... ला। देखन तो? का करिथौ तेला॥
है तुम्हार आगू-में ठाढ़े। डग डग-ले सरई अस बाढ़े॥
गइन लजाय सुनत सब्बो-झन। बक्‍का नइ फूटिस एक्‍को-ठन॥
रिस करके तब मोहन लाला। ठाढ़े भइन रोक रसदा-ला॥
अब तो जान तभे मैं देहौं। लेखा गतर गतर के लेहौं॥
ठौंका चढ़ती अयन जवानी। हवे तुम्‍हार अवो मोर रानी!॥
गहना गूंठा लादे जाथौ। कम्भुच नहीं जगात पटाथौ॥

दोहा
उटका पंची छांड़ के, देव जगात हमार॥
अभी तभी लेहौं झटक, रहि जाहौ झकमार॥

चौपाई
आज अरे ठौंका पहुँचायेंव। गंज दिना में मैं सपड़ायेंव॥
बघवा हांथी लादे जाथौ। छुच्छा ठेंगवा मोला चुमाथौ॥
आनी बानी माल रखे हौ। कुच्छू नैये ऐसन कहिहौ॥
तुम्हीं बतावौ कइसे बनि है?। थोरिक हो तो कोनो मनिहै॥
मोती केंरा कंवल लदायेव। हंडुला सोन अतेक-गढ़ायेव॥
तेमा फेर समुंद रखे हौ। पंड़की अउर परेवा है हो॥
कुंदरू दरमी धनुवा-लायेव। सूरुज चन्दा घलो लदायेव॥
सांप घलाय सबो पोषे हौ। सबो जगात आज मोर देहौ॥
सुनत बात ऐसन रौताइन। अबके सब्‍बो झन कौवाइन॥
देखे गोई! कहां बताथै। कैसे अंढ़त गंढ़त गोंठियाथै॥
ऐसन गोंठ फबित नइ आवै। मोहन हमला लाज मरावै॥
कोनो ऐसन कथे? जेठानी! मंगथैं श्‍याम जगात .....॥

दोहा
सुन पाहैं कोनो कहूं, तब का हो है हाल?
आगी-लग-जातिस-अओ! ऐसन ठट्ठा ख्याल॥

चौपाई
जानेन चेलिक भइन कन्हाई। तेखरे ये चोचला ऐ-दाई!॥
नगरा नगरा फिरत रहिन हैं। आजेच चेलिक कहां भइन हैं?॥
कौन गुरु मेर कान फुंकाइन? बड़े डपोर संख बन आइन॥
दाई ददा ला जे नइ मानै। ते फेर दूसर ला का जानै?॥
आजेच गम पायेन सब्बो-झन। फोर भिंभोरा जनमिन मोहन॥
जनमिन भलुक ईंखरे पेटी। बेटा नन्द जसोदा बेटी॥
गंज दिनाके ये बुढ़ुवा ऐ। मेछा दाढ़ी घलो खियागै॥
तेला नइ जानत हौ कोई। बुढ़ गंडाके तपनी गोई॥
गहना गूठा पहिरब ओढ़ब। नइ सुहाय जेला हमार जब॥
कोंचक लेय दूनो आंखी ला। देखे ओ! अन देखना केला॥
नइ येखर अमाय आंखी-में। सालत हैं एखरो छाती-में॥
रसदा चलती-में ओरझत है। गहना गूंठा ला उटकत है॥

दोहा
पहिरब ओढ़ब घला हर, कसके लगिस हमार॥
जर जातिस ऐसन गोई! गोकुल के बसवार॥

चौपाई
बघवा बन-में रहिथै गोई!। तेला भला! पकरथैं? कोई॥
तौनो ला हम मेर बताथै। कइसे कइसे के डेरूवाथै?॥
हांथी ला हम कहां लुकायेन?। हंडुला सोन कहां ले पायेन?॥
कोनो समुंद ला लाये सकथै। तेला भला कहां ले रखथै?॥
चन्दा सुरुज सरग में होथै। कैसे तेला इहां घटोथै?॥
कुंदरु दरमी कहां लदायेन?। पंड़की सुवा कहां टरकायेन?॥
मोती केरा कंवल कहां है?। तभ्‍भे बनि है जभे देखा है॥
कइसे कइसे के गोंठियाथै?। हमला कमठा तीर बताथै॥
विखहर सांप कहां पहुंचायेन?। तेला हम कैसे के लायेन?॥
झारा झरती लेय बताहै। नहि तो बात बिगर सब जाहै॥
बहुंतो हर ऐसनो के-का है। गढ़ गड़ के सब बात बताहै॥
मन-के मुखी होयगैं मोहन। कोनो हम्मन मनखे नोहन॥

दोहा
लेतो भला! देखाव-तो, तम्भे बनि है बात॥
फोकट के नोहै बने, कखरो करबो घात॥

चौपाई
नीकलि है तम्भे तो भरबो। नहि तो फेर जौंहर कर डरबो॥
सुनत बात मुसकाइन मोहन। हम फोकट कहवैया नोहन॥
कतको बढ़ बढ़ के गोठियावै। सूइन मेर नइ पेट लुकावै॥
सब्‍बो के जगात मड़वाहौं। अभ्भी एकक खोल देखाहौं॥
रेंगब हर हांथी लुर आथै। पातर कन्हिया बाघ हराथै?॥
केंरा जांघ नख्ख है मोती। कहौ बांचि हौ कोनौ कोती?॥
कंवल बरोबर हांथ देखाथै। छाती हंडुला सोन लजाथै॥
बोड़री समुंद हबै पंड़की गर। कुंदरू ओठ दाँत दरमी-थर।
सूरुज चन्दा मुंहमें आहै। टेंड़गा भऊं अओ! कमठा है॥
तुर तुराय मछरी अस आंखी। हैं हमार संगी मन साखी॥
सूवा चोंच नाक ठौंके है। सांप सरिक बेणी ओरमे है॥
अभ्‍भो दू-ठन बांचे पाहौ। फोर बताहौं सुनत लजाहौ॥