भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गंगा-स्तुति / विद्यापति

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:36, 13 अगस्त 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे
छोड़इत निकट नयन बह नीरे
कर जोरि बिनमओ विमल तरंगे
पुन दरसन होए पुनमति गंगे
एक अपराध छेमव मोर जानी
परसल माय पाय तुअ पानी
कि करब जप तप जोग धेआने
जनम कृतारथ एकहि सनाने
भनइ विद्यापति समदओं तोंही
अंत काल जनु बिसरह मोही