भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मायाला / अनामिका अनु
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:06, 22 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका अनु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बैंगनी किताब
हरा बुक मार्क
और भीतर की
वह उफ़्फ़ सी मीठी खटाई
किताब नहीं मायाला<ref>मैंगोस्टीन</ref> थी
बिक रही थी
केरल की उन दुकानों में
जहाँ हर स्वाद मिलता था
झक कर खाने वाले
मोल लाते थे
झोले भर-भर कर
और हंसते शब्द विदा हो लेते थे
हर उस दुकान से
शब्दार्थ
<references/>