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शाम / कुँअर बेचैन
Kavita Kosh से
संध्या के केशों में
बँध गया
'रिबन'
-सूरज की लाली का।
हँसुली-सा
इंद्रघनुष
बिंदिया-सा सूर्य
मेघों की
माला में
ज्योतित वैदूर्य्य
सतरंगे वेशों में
बस गया
बदन
-फूलभरी डाली का।
कुंडल-से
झूम रहे
क्षितिजों पर वृंत
चूम रहा
अधरों को
मधुऋतु का कंत
तन-मन के देशों को
दे गया
गगन
-मौसम ख़ुशहाली का।