भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बूढ़ा मलबा / निदा फ़ाज़ली
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:54, 11 अक्टूबर 2020 का अवतरण
हर माँ
अपनी कोख से
अपने शौहर को जन्मा करती है
मैं भी अब
अपने कन्धों से
बूढ़े मलवे को ढो-ढो कर
थक जाऊँगा
अपनी महबूबा के
कुँवारे गर्भ में
छुप कर सो जाऊँगा।