भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमसे मिली नहीं है दुनिया / निदा फ़ाज़ली

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:58, 11 अक्टूबर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जितनी बुरी कही जाती है
उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद
तुमसे मिली नहीं है दुनिया

चार घरों के एक मुहल्ले
के बाहर भी है आबादी
जैसी तुम्हें दिखाई दी है
सबकी वही नहीं है दुनिया

घर में ही मत इसे सजाओ,
इधर-उधर भी ले के जाओ
यूँ लगता है जैसे तुमसे
अब तक खुली नहीं है दुनिया

भाग रही है गेंद के पीछे
जाग रही है चाँद के नीचे
शोर भरे काले नारों से
अब तक डरी नहीं है दुनिया