भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल को दिलगीर नहीं मिलता / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:53, 5 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रत्नाकर के घर में आकर
तुम भूल गए मोती पाकर
पत्थर जितने मिल जायँ यहाँ,
प्यासे को नीर नहीं मिलता!

बिन माँगे मोती धर जाते,
बाँसों में भी रस भर जाते,
वे ही पपिहे को कहते हैं
सबको यह क्षीर नहीं मिलता!

किस ओर नहीं घनघोर भँवर?
सब ओर यही उठता है स्वर
इस लोन-लहर में जो आया,
फिर उसको तीर नहीं मिलता!