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क्या बोलूँ क्या बात है / रामगोपाल 'रुद्र'

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नीलकमल बन छाईं आँखें,
राग-रंग ने पाईं पाँखें;
बाण बने तुम इन्‍द्रधनुष पर
जग पीपल का पात है!

अनयन दिन के बीते पल-छिन;
माँग भरे क्यों संध्या तुम बिन!
लुक-छिपकर क्या झाँक रहे हो?
देखो, कैसी रात है!

घर सूना, बाहर भी सूना,
झंझावात, अँधेरा दूना;
कंपित दीप, झरोखे पर तुम
आँगन में बरसात है!