वाणी की इस नीरवता में सचमुच मैं चुप हूँ क्या?
यह कवि की भाषा है अश्रुत, कविता की परिभाषा!
यह अन्तरतम का प्रकाश है, यह निराश की आशा!
कौन जानता, इस परदे में होता कौन तमाशा?
ढोल पीटकर इस दुनिया को मैं निज परिचय दूँ क्या?
वाणी की इस नीरवता में सचमुच मैं चुप हूँ क्या?
यह कवि की भाषा है अश्रुत, कविता की परिभाषा!
यह अन्तरतम का प्रकाश है, यह निराश की आशा!
कौन जानता, इस परदे में होता कौन तमाशा?
ढोल पीटकर इस दुनिया को मैं निज परिचय दूँ क्या?