मैं लूँ समझ कि सब सपना था,
जो कुछ था, भ्रम-भर अपना था;
इस रस में क्या स्वाद मिलेगा?
मन को और घुला लेने दो!
ठंढी तो हो ही जाएँगी,
बादल बन जब ये छाएँगी,
कुछ दिन तो तल की ज्वाला में
चाहों को अकुला लेने दो!
इतने तड़के आज पधारे!
जाग रहे जब दीये-तारे;
ठहरोगे? ठहरो, आँखों की
गीली धूल धुला लेने दो!