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सरसों खिले( मुक्तक) / कविता भट्ट

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भूखे को रोटी मिले, प्यासे को पानी मिले।

ठूँठ हो चुके जो पेड़, उन्हें भी जवानी मिले।

विनती है यही ओ प्रभु! हो जाए जीवन वसन्त।

दिलों में बारूद नहीं, गुलाल हो,सरसों खिले।