भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरसों खिले( मुक्तक) / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूखे को रोटी मिले, प्यासे को पानी मिले।
ठूँठ हो चुके जो पेड़, उन्हें भी जवानी मिले।
विनती है यही ओ प्रभु! हो जाए जीवन वसन्त।
दिलों में बारूद नहीं, गुलाल हो,सरसों खिले।