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कुछ इस तरह / निकानोर पार्रा / अशोक पांडे

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पार्रा ठहाका मारता है मानो उसे नरक भेजा जा रहा हो
लेकिन आप बताएँ कवियों ने कब नहीं लगाया ठहाका
कम से कम वह दम ठोककर कह तो रहा है कि वह ठहाका मार रहा है

बीतते जाते हैं साल
बीतते ही जाते हैं
कम से कम वे इस बात का आभास तो देते ही हैं
चलिए मान लेते हैं
हर चीज़ यूँ चलती है मानो वह बीत रही हो

अब पार्रा रोना शुरू करता है
वह भूल जाता है कि वह एक अकवि है

बन्द करो दिमाग खपाना
आजकल कोई नहीं पढ़ता कविता
कोई फ़र्क नहीं पड़ता कविता अच्छी है या ख़राब

मेरी प्रेमिका मेरे चार अवगुणों के कारण मुझे कभी माफ़ नहीं करेगी :
मैं बूढ़ा हूँ
मैं ग़रीब हूँ
कम्युनिस्ट हूँ
और साहित्य का राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुका हूँ

शुरू के तीन अवगुणों की वजह से
मेरा परिवार मुझे कभी माफ़ नहीं कर सकेगा
चौथे की वजह से तो हर्गिज़ नहीं

मैं और मेरा शव
एक दूसरे को बहुत शानदार तरीके से समझते हैं
मेरा शव मुझसे पूछता है : क्या तुम भगवान पर भरोसा करते हो
और मैं दिल की गहराई से कहता हूँ : नहीं
मेरा शव मुझसे पूछता है : क्या तुम सरकार पर भरोसा करते हो
और मैं जवाब देता हूँ हँसिए हथौड़े के साथ
मेरा शव मुझसे पूछता है : क्या तुम पुलिस पर भरोसा करते हो
और मैं उसके चेहरे पर घूँसा मार कर जवाब देता हूँ
फिर वह अपने कफ़न से बाहर आता है
और एक दूसरे की बाँह थामे
हम चल देते हैं वेदी की तरफ़

दर्शनशास्त्र की सबसे बड़ी समस्या यह है कि
जूठे बरतन कौन साफ़ करेगा

यह इसी संसार की बात है

भगवान
सत्य
समय का बीतना
बिल्कुल सही बात
लेकिन पहले बताइए — जूठे बरतन कौन साफ़ करेगा

जो करना चाहे करे
ठीक है फूटते हैं अपन
और लीजिए अब हम दोबारा वही बन चुके : एक दूसरे के दुश्मन ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पांडे