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ख़त / रेखा राजवंशी
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तेरी मेरी बातों के ख़त निकले हैं अलमारी से
आँसू में भीगे भीगे ख़त निकले हैं अलमारी से
छुप के मिलना मिलकर तेरी आँखों में खोए रहना
प्यार मोहब्बत से भीगे ख़त निकले हैं अलमारी से
तेरी एक झलक की ख़ातिर दिन भर राहों को तकना
ख़ुद में खोए रहने के ख़त निकले हैं अलमारी से
तू आए तो झगड़ा करना ना आए तो घबराना
ग़ुस्सा प्यार जताने के ख़त निकले हैं अलमारी से
इक दिन हाथ छुड़ाकर मुझसे दूर चले जाना तेरा
तन्हा-तन्हा सूने से ख़त निकले हैं अलमारी से