भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भजन-कीर्तन: कृष्ण / 18 / भिखारी ठाकुर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:38, 30 जुलाई 2021 का अवतरण
प्रसंग:
वर्षा-ऋतु में विरहिणी की स्थिति का वर्णन किया गया है।
सखिया सावन बहुत सुहावन, ना मनभावन अइलन मोर।
एक त पावस खास अमावस, काली घाटा चहुँओर॥ सखिया॥
पानी बरसत जिअरा तरसत, दादुर मचावन सोर॥ सखिया॥
ठनका ठनकत झिंगुर झनकत, चमकत बिजली ताबरतोर॥ सखिया॥
कहत ‘भिखारी’ बिहारी पिअरी से, होई गइलन चित्तचोर॥ सखिया॥