भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संग मेरे हँसोगे ये उम्मीद है / विष्णु सक्सेना
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:22, 29 सितम्बर 2021 का अवतरण
संग मेरे हँसोगे ये उम्मीद है।
साथ ग़म में भी दोगे ये उम्मीद है।
दिन ढला रात ले आयी तन्हाईयाँ
तुम भी तारे गिनोगे ये उम्मीद है।
हाथ उठाओ हर एक की मदद के लिए
तुम भी फूलो फलोगे ये उम्मीद है।
वक़्त जैसा भी हो राह कोई भी हो
तुम सम्हल कर चलोगे ये उम्मीद है।
मन से धागा हूँ मैं तन से हो मोम तुम
मैं जलूँ तो गलोगे ये उम्मीद है,
उम्रभर तुमको मैं यूँ ही बाचूँगा पर,
तुम भी मुझको सुनोगे ये उम्मीद है।