Last modified on 25 नवम्बर 2021, at 14:45

मुझे ज़मीं से मुहब्बत थी / निर्मल 'नदीम'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 25 नवम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=निर्मल 'नदीम' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुझे ज़मीं से मुहब्बत थी, जा के लौट आया,
फ़लक को इश्क़ की अज़मत दिखा के लौट आया।

चराग़ क़ब्र ए वफ़ा पर जला के लौट आया,
मैं अपने दिल को ठिकाने लगा के लौट आया।

तो सहन ए आसमां सब भर गया सितारों से,
मैं ख़ाक चांद के मुंह पर उड़ा के लौट आया।

अमीर ए शहर मुझे ताज देने वाला था,
मैं नींव उसके महल की हिला के लौट आया।

वो एक तीर जो पूंजी थी उसकी आंखों की,
उसे मैं अपने जिगर में धंसा के लौट आया।

बहार आये न आये मेरे गुलिस्तां तक,
मैं दश्त ओ सहरा में गुंचे खिला के लौट आया।

मैं चाहता था वो जाए तो फिर नहीं आए,
मगर वो फिर नई बातें बना के लौट आया।

बहुत ग़ुरूर था उसको बुलंद होने पर,
मैं आसमान के सर को झुका के लौट आया।

सबूत मेरी मुहब्बत का मांगने वालो,
लहू से दार ओ रसन को सजा के लौट आया।

हवा के पांव बहुत लड़खड़ा रहे थे 'नदीम'
बहकती शाम को नींबू चटा के लौट आया।