ज़िन्दा है मरा नहीं
मेरे भीतर का राक्षस !
मेरी देह में जैसे किसी जहाज़ के अन्दर
अपने अन्दर जैसे किसी जेल में ।
दुनिया बस सिलसिला है दीवारों का ।
बाहर निकलने का रास्ता-सिर्फ़ एक खंजर
(दुनिया एक मंच है
तुतलाया है अभिनेता)
छल-कपट नहीं किया कोई
लँगड़े विदूषक ने ।
जैसे ख्याति में,
जैसे चोगे में
वह रहता है अपनी देह में ।
वर्षों बाद !
ज़िन्दा हो -- ख़याल रखो !
(केवल कवि
बोलते हैं झूठ, जैसे जुए में !)
ओ गीतकार बन्धुओ,
हमारी क़िस्मत में नहीं है टहलना
पिता के चोगे की तरह
इस देह में ।
हम पात्र है इससे कहीं अधिक श्रेष्ठ के
मुरझा जाएँगे इस गरमी में ।
खूँटे की तरह गड़ी हुई इस देह में
और अपने भीतर जैसे बॉयलर में ।
ज़रूरत नहीं बचाकर रखने की
ये नश्वर महानताएँ
देह में जैसे दलदल में !
देह में जैसे तहखाने में ।
मुरझा गए हम
अपनी ही देह में निष्कासित,
देह में जैसे किसी षड्यन्त्र में
लोहे के मुखौटे के शिकंजे में ।
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब रूसी भाषा में यही कविता पढ़िए
Марина Цветаева
«Жив, а не умер…»
Жив, а не умер
Демон во мне!
В теле как в трюме,
В себе как в тюрьме.
Мир — это стены.
Выход — топор.
(«Мир — это сцена»,
Лепечет актер).
И не слукавил,
Шут колченогий.
В теле — как в славе.
В теле — как в тоге.
Многие лета!
Жив — дорожи!
(Только поэты
В кости́ — как во лжи!)
Нет, не гулять нам,
Певчая братья,
В теле как в ватном
Отчем халате.
Лучшего стоим.
Чахнем в тепле.
В теле — как в стойле.
В себе — как в котле.
Бренных не копим
Великолепий.
В теле — как в топи,
В теле — как в склепе,
В теле — как в крайней
Ссылке. — Зачах!
В теле — как в тайне,
В висках — как в тисках
Маски железной.
5 января 1925