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प्राण सूक्त - अथर्ववेद / मृदुल कीर्ति

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प्राण सूक्त - अथर्ववेद ११/४ /१-२६



प्राणाय नमो यस्य सर्वमिदं वशे।
यो भूतः सर्वस्येश्वरो यस्मिन्त्सर्वं प्रतिष्ठितम्।१॥

प्राण के आधीन सब जग, प्राण को मेरा नमन।
प्राण ही ईश्वर है सबका, प्राण करते सञ्चलन।१॥

नमस्ते प्राण क्रन्दाय नमस्ते स्तनयित्नवे।
नमस्ते प्राण विद्युते नमस्ते प्राण वर्षते।२॥

नाद मेघों में व् गर्जन, प्राण ही करते सृजन,
वृष्टि करते विद्युते, हे प्राण! को मेरा नमन।२॥

यत्प्राण स्तनयित्नुनाअभिक्रन्दत्योषधीः।
प्र वीयन्ते गर्भान्दधतेअथो बहिर्वि जायन्ते।३॥

प्राण तू मेघों के द्वारा, गर्जना करता गहन,
औषधी तेजस्व पाकर, गर्भ धारित, वृद्धि बन।३॥

यत प्राण ऋतवागन्तेअभिक्रन्दत्योषधीः।
सर्व तदा पर मोड़ते यत्किं च भूम्यामधिम्।४॥

प्राण! वर्षा काल औषधि, हेतु तू गर्जित गहन।
भूमि पर सर्वस्व तब ही, सकल हों आनंद घन।४॥

यदा प्राणो अभ्यवर्षीद्वर्षेनम पृथ्वीं महीम।
पशवस्तत्प्र मोदन्ते महो वै नो भविष्यति।५॥

महिम भू पर वृष्टि से, जब प्राण बरसें वृष्टि बन।
सकल पशु हर्षित महा, अथ हम सभी का पल्ल्वन।५॥

अभिवृष्टा ओषधयः प्राणेन संवादिरन।
आयुर्वै नः प्रातीतरः सर्वा नः सुरभीरकः।६॥

वृष्टि वृद्धित औषधी सब, प्राण से कहतीं वचन।
तू हमारी आयु वर्धक, सुरभि तुमसे हर्ष मन।६॥

नमस्ते अस्त्वायते नमो अस्तु परायते।
नमस्ते प्राण तिष्ठत आसीनायोत ते नमः।७॥

प्राण को करते नमन हम, जो कि हैं गमनागमन।
प्राण जो आसीन स्थिर, उनको भी मेरा नमन।७॥

नमस्ते प्राण प्राणते नमो अस्तवपानते।
पराचीनाय ते नमः प्रतीचीनाय ते नमः सर्वस्मै त इदं नमः।८॥

प्राण जीवन प्राण सर्वम, प्राण को मेरा नमन।
प्राणपानापान गतिमय, पूर्ण को मेरा नमन।८॥

या ते प्राण प्रिया तनूर्यो ते प्राण प्रेयसि।
अथो याद भेषजम् तव तस्यं नो धेहि जीवसे।९॥

प्राण प्रिय जो देह तेरी, प्राणप्राणामय जो तन।
औषधीय प्राण शक्ति, दीर्घ जीवन का वरण।९॥
 
प्राणाः प्रजा अनु वस्ते पिता पुत्रमिव प्रियं।
प्राणो ह सर्वस्येश्वरो यच्चं प्राणति यच्च न।१०॥

पुत्र प्रिय संग जस पिता, तस प्राण से सम्बन्ध घन।
प्राण जड़ चेतन का ईश्वर, प्राण ही सर्वस्व धन।१०॥

प्राणो मृत्युः प्राणस्तक्मा प्राणं देवा उपासते।
प्राणो हं सत्यवादिनमुत्तमे लोक आ दंधत।११॥

प्राण मृत्यु, प्राण जीवन, शक्ति अपि देवाः नमन।
प्राण उत्तम लोक में करें , सत्यवादी का उन्नयन।११॥

प्राणो विराट प्राणो देष्ट्री प्राणं सर्वे उपासते।
प्राणो ह सूर्यश्चन्द्रमां प्राणमाहुः प्रजापतिं।१२॥

प्राण रवि-शशि और प्रजापति, प्राण का तेजस गहन।
प्राण ही विश्वानि प्रेरक, विश्व करता स्तवन।१२॥

प्राणापानौ व्रीहियवावनडवान प्राण उच्यते।
यवें ह प्राण आहितोअपानो व्रीहिरुच्यते।१३॥

प्राणापान ही जौ व चावल, प्रमुख बैल हैं प्राण घन।
प्राण ही जौं में समाहित, अपान ही अक्षत कथन।१३॥

अपानति प्राणति पुरुषो गभे अंतरा।
यदा त्वं प्राण जिन्वस्यथ स जायते पुनः।१४॥

गर्भ में भी जीव करता, प्राण अपान का सञ्चलन।
प्राण की ही प्रेरणा से , जीव करता आगमन।१४॥

प्राणमाहुर्मातरिश्वानं वातो ह प्राण उच्यते।
प्राणे हं भूतं भव्यम् च प्राणे सर्वं प्रतिष्ठितम्।१५॥

वायु नाम है प्राण का, मातरिश्वा भी कथन।
तीन कालों में है जो कुछ , सकल प्राण में संचलन।१५॥

आथर्वणीरांगिरसीदैवीमनुष्यजा उत।
ओषधयः प्र जायन्ते यदा त्वं प्राण जिन्वसि।१६॥

आथर्वणी, आंगीरसी, दैवी, मनुजकृत बहुल घन।
प्राण की ही प्रेरणा से, फलित औषधियां व वन।१६॥

यदा प्राणो अभ्यवर्षीद्वर्षेणं पृथ्वीमं महीम।
ओषधयः प्र जायन्तेअथो याः काश्चं विरुधः।१७॥

प्राण जब इस महिम पृथ्वी, पर बरसता वृष्टि बन।
विविध औषधियां वनस्पतियां पनपतीं वृद्धि , धन।१७॥

यस्ते प्राणेदं वेद यस्मिश्चासि प्रतिष्ठितः।
सर्वे तस्मै बलिं हरानमुष्मिल्लोक उत्तमे।१८॥

प्राण की इस शक्ति को, जान पाता है जो जन।
प्राण हैं जिसमें प्रतिष्ठित, उसको करते सब नमन।१८॥

यथां प्राण बलिहृतस्तुभ्यं सर्वाः प्रजा इमाः।
एवा तस्मै बलिं हरान्यस्त्वां शृणवत सुश्रवः।१९॥

सकल जन करते हैं जस, हे प्राण! वर अभिनन्दनम्।
उत्तम यशस्वी, सुश्रुत जो, उनके लिए भी अर्पणम्।१९॥

अंतर्गर्भश्चरति देवतास्वाभूतो भूतः स उं जायते पुनः।
स भूतो भव्यम् भविष्यत्पिता पुत्रं पर विवेशा शचीभिः।२०॥

इंद्रियों में प्राण जो, गर्भ में वही संचरण।
परिभ्रमित त्रैकाल, पितु का अंश शिशु करता वरण।२०॥

एकं पादं नोटखिदति सलिलाध्दंस उच्चरन्।
स भूतो भव्यम् भविष्यतिपिता पुत्रं प्र विवेशा शचीभिः।२१॥

प्राण वायु निमिष भी, रोके यदि, अपना चरण।
आज-कल,दिन-रात, तम-रवि, सकल सृष्टि का मरण।२१॥

अष्टाचक्रं वर्तत एकनेमी सहस्त्राक्षरं प्र पुरो नि पश्चा।
अर्धेन विश्वं भुवनं जजान यदस्यार्धं कतमः स केतुः।२२॥

एक नेमि, अष्टचक्रम, सहस्त्राक्षर चक्रयन,
अर्ध भागे, विश्व भुवनम, शेष किसका केतुयन।२२॥

यो अस्य विश्वजन्मन ईशे विश्वस्य चेष्टतः।
अन्येषु क्षिप्रधन्वने तस्मै प्राण नमोस्तु ते।२३॥

चेतना और जन्म दाता, प्राण प्राणेश्वर नमन,
हे अनन्या ! त्वरित गतिमय, प्राण को अगणित नमन।२३॥

यो अस्य सर्वजन्मन ईशे सर्वस्य चेष्टतः।
अतन्द्रो ब्रह्मणा धीराः प्राणो मानुम तिष्ठतु।२४॥

जन्म दाता चेतनामय, प्राण से ही स्तवन।
आत्मशक्ति धीरमय, मम प्राण कर मुझमें रमण।२४॥

ऊर्धवः सुप्तेषुम जागार ननु तिर्यङ्क नि पद्यते।
न सुप्तमस्य सुप्तेष्वनुम शुश्राव कश्चन।२५॥

सबके सोने पर भी केवल, प्राण न करते शयन,
प्राण सोते क्या कदाचित, क्या कभी होता श्रवण?२५॥

प्राण माँ मत्पर्यावृतो न मदन्यो भविष्यसि।
अपाम् गर्भमिव जीव से प्राण बन्धनामि त्वा मयि।२६॥

प्राण! मुझसे न पृथक, न दूर हो करना गमन,
नीर सम, हे प्राण! मुझको, प्राण हित प्रिय बंधनम।२६॥

अथर्ववेद के प्राण सूक्त का मूल संस्कृत से काव्य रूपांतरण
डॉ मृदुल कीर्ति
बसंत पंचमी २३ फरवरी २०१५