भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़कियों के सपने / शेखर सिंह मंगलम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:54, 30 अप्रैल 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेखर सिंह मंगलम |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँख आसमान से ज़मीन पे,
औचक उसकी माँग से मीना तक
ढूँढने लगी रिश्ता-
जो पिछले बरस हुआ था।

चिन्ह लापता देख-
आँख लटक गई उसकी छाती पे,
सुना था शहर के सबसे अच्छे सुनार के यहाँ से
बनवाया गया था,
डेढ़ भर का कस्टमाइज्ड मंगलसूत्र।

गोदना भी था,
शायद गोआ हनीमून के दौरान
गर्दन पर गुदवाई थी-
वो नाम जिसके सपने देखे थे उसने बचपन से।

पच्चीस साल के सपने,
पच्चीस साल की रूह,
पच्चीस साल की देह,
शादी की भरसांय में मक्के की तरह फुट लावा बन गई
सफ़ेद लावा यानी सफ़ेद बिना बिधवा हुए।

छोड़ी हुई स्त्रियां-
ठीक उसी तरह ज़माने से सकुचाती हैं-जैसे
कोई गर्भपात कराने को गई
कुँवारी लड़की डॉक्टर से सकुचाती है-या

कोई लड़का जिसे गुप्त रोग हो
और डॉक्टर से समस्या बताने में सकुचाता है।