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सामने है कन्दरा / दिनेश कुमार शुक्ल

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आ रहा है इक नया तूफान
दूब तक में उठेगी सिहरन
दूब अपनी जड़ों के पंजों से
मेरी आत्मा को जकड़ लेगी

उड़ती लुढ़कती जा रही है
एक सूखी और उखड़ी हुई झाड़ी
उसी में उलझी
हजारों उलझनें, कुछ फटे कागज
बाल, केंचुल

आँख मीचे
जा रहा है वो हवा का घुड़सवार
सामने सीधे-
सामने है कन्दरा घनघोर