Last modified on 20 मई 2022, at 23:49

खोलो आँख / दिनेश कुमार शुक्ल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:49, 20 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आँखों की अपार पारदर्शिता के रंग रंगी
व्योम की है नीलिमा हरीतिमा धरा की है

वाणी है विद्रोह ज्यों मघा के मेघ की-सी झड़ी
गूँज रही सोंधी-सौंधी गंध उर्वरा की है

जीवन है अग्नि का अपार पारावार इसे
पार करने की एक युक्ति कविता की है

खोलो आँख दृष्टि से तुम्हारी बदलेगा दृश्य
गहरी हजारों साल नींद जड़ता की है।

आपके विचार-पुंज का है प्रतिविम्ब सूर्य
और चाँद एक बूँद रचना सुधा की है