Last modified on 22 जून 2022, at 12:47

सच कहूँ तो चुप हूँ! / प्रदीप त्रिपाठी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:47, 22 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सब के सब...
मिले हुए हैं
नाटक के भी भीतर
एक और नाटक खेला जा रहा है

हमसब ...
एक साथ छले जा रहे हैं
क्रान्ति और बहिष्कार के
छद्मी आडंबरों के तलवों तले

अभिव्यक्ति के तमाम खतरे उठाते हुए भी
मैं आज नि:शब्द हूँ
सच कहूँ तो
चुप हूँ
कारण यह.
कि मेरे सचके भीतर भी एक और अदना सा सच है
कि
मैं बहुत कायर हूँ।