भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठक बहादुर माझी / प्रदीप त्रिपाठी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:16, 22 जून 2022 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुरखों ने बतियाना बंद कर दिया है
वे बोलते हैं अब देह की भाषा में

ठक बहादुर माझी
अपनी भाषा को बोलने वाले अंतिम व्यक्ति थे

ठक बहादुर के साथ
दुनिया की एक भाषा भी चुपचाप चली गई
चला गया थोड़ा सा पहाड़
थोड़ी सी नदी
थोड़े से नमक के साथ
चला गया जीवन का शोरगुल भी।

देखते-देखते
चली गई दुनिया के भूगोल से एक भाषा की आत्मा

चले गए पुरखे-पुरनिया
अब देह की भाषा भी चली गई उनके साथ

मैं भाषा की अदालत में खड़ा होकर
माफी मांगता हूं

किसी भाषा के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करना
हमारे समय का सबसे बड़ा अपराध है।