भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्द्ध सरकारी कलेण्डर–सा / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:28, 8 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार कृषक |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अर्द्ध सरकारी कलेण्डर–सा
आज का हर आदमी
वक़्त की
दीवार पर लटका हुआ !
कील में
गर्दन फँसाकर
झूलते रहना,
जो सहा जाए
बिना नकचक किए
सहना,
चौखटे पर साफ़ दिख जाता
माह का हर सिलसिला
टें हुई
कुछ भी अगर खटका हुआ !
27 जनवरी 1974