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अर्द्ध सरकारी कलेण्डर–सा / रामकुमार कृषक

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अर्द्ध सरकारी कलेण्डर–सा
आज का हर आदमी
वक़्त की
दीवार पर लटका हुआ !

कील में
गर्दन फँसाकर
झूलते रहना,

जो सहा जाए
बिना नकचक किए
सहना,

चौखटे पर साफ़ दिख जाता
माह का हर सिलसिला
टें हुई
कुछ भी अगर खटका हुआ !

27 जनवरी 1974