घिरी उदासी जब जीवन में
तब मैंने त्योहार मनाया
रोते रहे लोग जब जीभर
आँसू पीकर मैं मुस्काया
रो-रोकर जो दिन कटने थे
मैंने वे सब हँसकर टाले।
मुस्कानों में दबकर फूटे,
पड़े पगों में जो-जो छाले।
मेरे आगे हार गई थी
जीवन की हर इक मजबूरी,
गिरकर उठकर पूरी की थीं,
धरती से अम्बर की दूरी।