भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चन्द्रमा / सुभाष काक
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:20, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष काक |संग्रह=मिट्टी का अनुराग / सुभाष काक }}<po...)
चन्द्रमा को केवल देखिए नहीं
नीचे ले आइए।
इसकी आकृति
अपने साथ रखिए
थैली में,
गोल पैसे की तरह।
इसे काटिए
बाँटिए।
इसे दो बनाकर
आँखों पे रखिए
सुख चैन के लिए।