Last modified on 12 फ़रवरी 2023, at 21:49

युग युगों से हैं मनाते / बाबा बैद्यनाथ झा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 12 फ़रवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबा बैद्यनाथ झा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

युग युगों से हैं मनाते, पर्व यह भाई-बहन।
है यही अनमोल रिश्ता, श्रेष्ठतम सबसे गहन।।

वर्ष में इस एक दिन की, आस में दोनों रहे,
आज अनुपम रीति का ये, कर रहे हैं निर्वहन।

शक्ति के अनुसार भ्राता, दे सके उपहार जो,
वस्त्र भाईदूज का जो, शीघ्र ले भगिनी पहन।

श्रेष्ठ रिश्ते को निभाना, भी बड़ा ही धर्म है,
वृद्धजन कहते रहे हैं, शास्त्र का भी है कहन।

दुःख में भाई रहे जब, दर्द बहना को उठे,
एक भाई भी न करता, कष्ट बहनों के सहन।

रक्त का सम्बन्ध बाबा, शुद्ध सात्विक भाव का,
हो नहीं पाए कभी भी, आपसे इसका दहन।