भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साथ मेरे अगर रहा होता / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:51, 12 फ़रवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबा बैद्यनाथ झा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साथ मेरे अगर रहा होता।
प्रेम सर में तभी बहा होता।

दर्द बाँटा नहीं किसी से भी,
काश!उसने मुझे कहा होता।

एक पाषाण सा खड़ा दुख जो,
बुद्धि से ही कभी ढहा होता।

धैर्य की ही कमी रुलाती है,
कष्ट जो था उसे सहा होता।

चाटुकारी नहीं किसी की हो,
पाँव प्रभु के सदा गहा होता।