Last modified on 2 मई 2023, at 17:42

कितना कठोर मन होगा / मनीष यादव

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 2 मई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कितना कठोर मन होगा
उस माँ का
जब बेटी की हथेली को चूमते हुए
उसने कहा-

“जाओ ससुराल ,
नए यात्रा की शुरुआत में
अपने जीवन-साथी के साथ!”

जबकि माँ को पता था
वह सिर्फ अपने साथ”ब्याह”को ले जा रही..
जीवन तो वो कब का प्रेम को समर्पित कर चुकी।

ध्वनि के साथ-साथ
प्रेम विसरण क्यों नहीं करता?

कलेजे़ को हर रोज़
एक नए हिस्से में विभक्त कर
कब तक सुनाती रहे वो अपने मन की चुप्पी!

क्या सचमुच बाल के सफ़ेद होने की उम्र में
प्रेम की स्मृतियाँ धुंधली हो जाती हैं?

या उसके छोड़े गए प्रेमी के प्रार्थनाओं की धांह
दिन प्रतिदिन गलाए जाती होगी देह को ,
जैसे गल जाते हैं वो सारे गिरे श़हतूत!
जिनके बाग में फल तो बहुत सारे होते हैं
किंतु यात्रियों के अंदर आने की अनुमति नहीं।

लड़कीयाँ जो आज ओसारे में घूँघट
और दुआरे में दहलीज़ से बँध चुकी हैं!

कैसे सिहर उठता होगा मन उनका ,
जो कभी हँसी-ठिठोली कर
अपने प्रेमी के संग भाग जाने की
तरक़ीब बताया करती थीं अपनी सहेलियों को।

चिंतित मन द़िलासा देता है मुझे
कहता है मत रुठो ,

किसी दूर अनज़ान शहर में
जंगल में बैठ ,
पेड़ की टहनियों को तकते हुए
वह सारी प्रेमिकाएं लिख रही होंगी एक प्रेम कविता!

भले ही यह किस्सा छिपा हो
कि उनके हिस़्से न घर आया, न प्रेम।