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हम बस सीता छी / दीपा मिश्रा

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हँ हम सीता जी
अहाँ सबहक परिचिता छी
कखनो हमरा मैथिली
कखनो जानकी
कखनो सिया
त' कखनो वैदेही
बजबैत छी
कखनो हमर परिचय
रामक जीवनसंगिनीक
 रूपमे देल जाइए
त' कखनो जनकक पुत्रीक रूपमे
लेकिन हमरा सबसँ प्रिय
हमर मूल नाम अछि 'सीता'!
अहाँ सबहक लेल हमर जन्म
रहस्य थिक लेकिन नै जानि
ओकरा रहस्य कियाक बुझैत छी
बेटी के त' एखनो जन्मैत देरी
बहुत ठाम जीवित खेतमे दबा देल जाइए
त' कतेक ठाम रस्ता कात फेक देल जाइए
भऽ सकैत अछि हमरो माएकेंँ
कर्णक माए सन किछु विवशता होइन
छोड़ू ओना भऽ त' आरो बहुत किछु सकैये
हमर जन्म ओहुना हमरा लेल
कोनो रहस्य नाहि
रहस्य त' हमरा हमर ओकर बादक
अपन संपूर्ण जीवन बुझाइए
कोना हम खेलाइत खेलाइत धनुष उठौलौं
ओहि निमित्त हमर स्वयंवर रचल गेल
रुकू त' कनेक
ओकरा स्वयंवर कियाक कहैत छी ?
हमर इच्छा कतय छल
तय त' ई भेल जे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी
हमर वरण करताह
हम त' विजेताक पदक मात्र रही
ई अलग बात जे हमरा पर
गिरिजाक अनन्य आशीष छल जे
जकरा देख पुष्पवाटिकामे सम्मोहित भेलौं
सीता रूपी पदक हुनके भेटलैन
आह!!!माँ पिताक गृह त्याग की
आसान होईत छैक
बेटी छलौं हमरो करय पड़ल
अयोध्या आबि
नववधूक सबटा मर्यादाक पालन केलौं
किछुए दिन बीतल की पता चलल
जे हमर पति वनवास लेल जाइत छथि
तुरंत सब साज श्रृंगार छोड़ि तापसी वेषमे
हमहूंँ हुनक अनुगामिनी भेलौं
की स्त्रीक वनमे रहब आसान होइत अछि?
पुरुष बहुत किछ उन्मुक्त भऽ कऽ सकैत छथि
किन्तु स्त्री?
कनेक सोचब एहि लेल !!
छद्मवेषमे रावण हमरा
अपहृत कऽ लऽ गेल
अशोक वाटिकामे ओकर लोलुपतासँ त'
अपना के बचा लेलौं लेकिन
वापस अयोध्या अएलाक बाद ?
हमर पति के त' सब अहि लेल
सुनबैत छी परंच कहू
यदिअहाँके स्त्रीके कियो अपहरण कऽ ले
आ साल भरि परपुरुषक संग रहि
ओ वापिस आबैथ त' की हुनका
पहिने जेना अपन हृदयमे स्थान देबैन?
रहय दियौ
किछु प्रश्नक उत्तर पुरूष लग नै रहैत छैक
हमरो पति मर्यादा संग बान्हल छलाह
गर्भवती पत्नीकेंँ वन छोड़बा अएलाह
'वन' ई शब्द त' हमरा संग
सदिखन जुड़ल रहल
राजकुमारी आ रानी त' हम अनेरो कहेलौं
कहू त' आधासँ बेसी जीवन
वनेमे बितबय पड़ल
एहिसँ नीक त' कोनो आदिवासीक
संतान होइतहुँ
यदि वनेमे रहबाक छल
त' कमसँ कम उन्मुक्त आर
स्वच्छंद जीवन जीबितहुँ
सुनु अहाँ हमरा किछु नै चिन्हैत छी
यदि चिन्हतौं त' कहियो सीताकेंँ
राम आ जनकसँ अलग कऽ के देखतौं
हमर हेबाक महत्त्व बुझितौं
परंच रहय दियौ
समाज एखनो ओतय अटकल अछि
पाथड़ हरदम अहिल्ये बनती
त्याग हरदम सीतेकेंँ हेतैन
परित्यक्त्या हरदम स्त्रीये कहेती
चाहे महलमे रहैथ या वनमे
स्त्रीक जीवन सबठाम समान अछि
कनिये ताकू अहाँ त' आइयो
हर दू डेग पर सीता भेटती
अपनामे ओझरायल अपनामे डूबल
जाहि खूंँटसंँ बान्हि देबैन
गाय जेना ओकर पाछाँ -पाछाँ चलती
समयमे परिवर्तन भेल विचारमे नाहि
जहिया सीताकेँ सीता बुझब
तहिये हम अपन जीवनक रहस्य खोलब