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फिर से / ऋचा दीपक कर्पे
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प्रेम वेम की
वे सारी बातें
जो हमने की थीं
वे सारी यादें
जो हमारे प्रेम से जुड़ी थीं
कुछ वादे भी थे
जो शायद अनकहे थे
नाज़ुक लम्हे थे
जो साथ बिताए थे हमने
कुछ मेरी अदाएँ थी
कुछ तुम्हारी वफ़ाएँ थीं
और न जाने कितना कुछ था...
वह सब-कुछ..
जो था,
जो नहीं था,
और जो होकर भी नहीं था,
गर्म कपड़ों और शालों के साथ
एक बक्से में सहेजकर
रख दिया है मैंने दराज में...
इस इंतज़ार में
कि शायद फिर कभी
आएँ वे सर्दियाँ
और मैं ओढ़ लूँ
उन जज़्बातों को फिर से...