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मेकिंग ऑफ़ बार्बी / तृष्णा बसाक / लिपिका साहा
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बोलती है माँ, ‘बन सकेगी तू, कर पाएगी वैसा ही?
सुनहरे बालों, नीलाभ नयनों से जैसा करती है बार्बी ?
ढल जाएगी ना, लाडो मेरी, साँचे में हूबहू जैसे हो बार्बी?
देखा नहीं तूने, अन्धी गलियों के जलसों में भी होते हैं अब रैम्प,
अभी के लिए ही सही, तू बन जा ना किसी में भी चैम्प !
शेफ बन या सौन्दर्य विशारद या पकड़ना हो स्टेथो
कभी न बनना मेरी तरह धुर गँवार तू तो
सुन मेरी बच्ची ! जिस पेशे में भी खोलेगी अपनी म्यान
हर पूजा का एक ही मंत्र, तेरे कमर की नाप !
उसी मंत्र से ब्रह्माण्ड बहकाए जाती विनोदिनी बार्बी
बुद्धू लड़की जाने कब तू छोड़ेगी ये खाना दाल-रोटी
बन पाएगी ना, बन तो जाएगी ना, वैसी ही, जैसी है डॉल बार्बी ?
मूल बांग्ला से अनुवाद : लिपिका साहा