भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भीड़ / रश्मि प्रभा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 18 अगस्त 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि प्रभा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीड़ !
जहां हर कोई बोलता है,
पर सुनता कोई नहीं है
जो भीतर की आवाज़ को दबा देता है...
अकेलापन !
जहां शब्द हाहाकार करते हैं,
स्मृतियां
लहरों की मानिंद तैरती हैं...
या वह सन्नाटा
जहां न चाह है, न पीड़ा,
केवल एक ठहरा हुआ मौन है...
इन तीनों के बीच झूलता जीवन
कभी खुद से लड़ता है,
कभी खुद में छिप जाता है...
पर एक दिन
मृत्यु आ ही जाती है !
बिना किसी दस्तक के,
बिना तर्क के,
बिना यह पूछे कि
तुम भीड़ में थे,
अकेले थे या बस चुप थे ?