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तारों और गुलाबों की तरह / मरीना स्विताएवा
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तारों और गुलाबों की तरह
बड़ी होती जाती हैं कविताएँ
सौन्दर्य की तरह वे होती हैं अवांछनीय ।
मुकुटों और प्रशस्तियों के बारे में
एक ही उत्तर है मेरे पास
कि वे मुझे क्योंकर मिलेंगे ?
सोए होते हैं हम जब
अंगीठी के पास से
प्रकट होता है चार पंखों वाला दिव्य अतिथि ।
ओ मेरी दुनिया, समझने की कोशिश कर !
सपनों में अनावृत किए हैं गायक ने
तारों के नियम और सूत्र फूलों के ।
रचनाकाल : 14 अगस्त 1918
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह