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बाज के हमले निरंतर हो गए / जहीर कुरैशी
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बाज के हमले निरंतर हो गए
रोज़ ही घायल कबूतर हो गए
अपनी मर्ज़ी से भी भागी लड़कियाँ
इस तरह लाखों ‘स्वयंवर’ हो गए
कुछ परिस्थितियाँ ही ऐसी थीं कि हम
पत्थरों के बीच पत्थर हो गए
जैसे-जैसे शाम पास आती गई
चाँदनी-से, धूप के स्वर हो गए
गोद में जिनको खिलाया था कभी
वो मेरे कद के बरबर हो गए
जब समंदर में समाए जल-प्रपात
यूँ लगा ‘सागर में गागर’ हो गए
आजतक ज़िन्दा है दुनिया में ‘कबीर’
ऐसे सर्जक भी अनश्चर हो गए.