भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँसों में दर्द भरा है/ विनय प्रजापति 'नज़र'

Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:19, 28 दिसम्बर 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लेखन वर्ष: २००५

साँसों में दर्द भरा है
हर मन्ज़र हरा है

वह पहली नज़र से
इस दिल में ठहरा है

हर शय में वह है
और उसका चेहरा है

दर्द सिमटता नहीं
हाल हर पल बुरा है

अँधेरों की आदत नहीं
जुगनुओं का पहरा है

वह पसंद है मुझे
उसका दिल गहरा है