लेखन वर्ष: 2004
उसने हमसे कभी वफ़ा न की
और हमने भी तमन्ना न की
बहुत बोलते हैं सब ने कहा
सो आदत-ए-कमनुमा न की
बहुत आये बहुत गये मगर
जान किसी पर फ़िदा न की
उसने कही और हमने मानी
उसकी कोई बात मना न की
ख़ता-ए-इश्क़ के बाद हमने
फिर कभी यह ख़ता न की
बात थी सो दिल में रह गयी
सामने पड़े तो नुमाया न की
जिससे मुँह फेर लिया हमने
फिर कभी बात आइंदा न की
उम्मीद मर गयी सो मर गयी
वह बाद कभी ज़िन्दा न की
चोट दोस्ती में खायी है 'नज़र'
किसी से नज़रे-आशना न की