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उसने हमसे कभी वफ़ा न की/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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रचना काल: 2004

उसने हमसे कभी वफ़ा न की
और हमने भी तमन्ना न की

बहुत बोलते हैं सब ने कहा
हमने आदत-ए-कमनुमा<ref>कम बोलने की आदत डालना</ref> न की

बहुत से आये बहुत गये मगर
मैंने जाँ किसी पे फ़िदा न की

उसने कही और हमने मानी
उसकी कोई बात मना न की

ख़ता-ए-इश्क़ के बाद ख़ुदाया
फिर दूसरी कोई ख़ता न की

इक बात थी सो दिल में रह गयी
सामने पड़े तो नुमाया<ref>प्रकट</ref> न की

जिससे मुँह फेर लिया एक बार
फिर कभी बात आइंदा न की

उम्मीद मर गयी सो मर गयी
वह बाद में कभी ज़िन्दा न की
 
चोट दोस्तों ने ही दी 'नज़र'
किसी से नज़रे-आशना न की

शब्दार्थ
<references/>