भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भंवर / मोहन राणा

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:45, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंगूर की बेलों में लिपट

सो जाती धूप बीच दोपहर

गहरी छायाओं में

सोए हैं राक्षस

सोए हैं योद्धा

सोए हैं नायक

सोया है पुरासमय खुर्राता

अपने आपको दुहराते अभिशप्त वर्तमान में


4.12.2005