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भंवर / मोहन राणा
Kavita Kosh से
अंगूर की बेलों में लिपट
सो जाती धूप बीच दोपहर
गहरी छायाओं में
सोए हैं राक्षस
सोए हैं योद्धा
सोए हैं नायक
सोया है पुरासमय खुर्राता
अपने आपको दुहराते अभिशप्त वर्तमान में
रचनाकाल: 4.12.2005