Last modified on 14 फ़रवरी 2009, at 15:28

तेरा हाथ मेरे काँधे / बशीर बद्र

सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:28, 14 फ़रवरी 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है

नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं
सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है

पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है