Last modified on 18 अगस्त 2006, at 18:41

मन रे पासि हरि के चरन / मीराबाई

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:41, 18 अगस्त 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रचनाकार: मीराबाई

~*~*~*~*~*~*~*~

मन रे पासि हरि के चरन।

सुभग सीतल कमल- कोमल त्रिविध - ज्वाला- हरन।

जो चरन प्रह्मलाद परसे इंद्र- पद्वी- हान।।

जिन चरन ध्रुव अटल कींन्हों राखि अपनी सरन।

जिन चरन ब्राह्मांड मेंथ्यों नखसिखौ श्री भरन।।

जिन चरन प्रभु परस लनिहों तरी गौतम धरनि।

जिन चरन धरथो गोबरधन गरब- मधवा- हरन।।

दास मीरा लाल गिरधर आजम तारन तरन।।