भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कानन दै अँगुरी रहिहौं / रसखान

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:00, 21 अगस्त 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लेखक: रसखान

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै।

माहिनि तानन सों रसखान, अटा चड़ि गोधन गैहै पै गैहै॥

टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै।

माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥