भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हें देख कर / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:02, 1 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2 }} <poem> लिखना नहीं चाहा था दुख की...)
लिखना नहीं चाहा था दुख की कविता
विछोह का दर्द
तुम्हें देख कर धान के खेत याद आते थे
दूर तक फैला खेतों पर नीला आसमान
दूरवासी परिंदों की ऊंची उड़ान
एक सजल गोधूली
तुम्हें देखकर
मिथक हो चुके कविता के बिंब याद आते थे
आज महीनों बाद
बस से तुम्हारी एक झलक भर दिखी,
ट्रैफिक के विशाल रेले के बीच
फिर निशान भी नहीं था तुम्हारे वहां होने का
फिर मैंने सिर्फ दुख लिखा
विछोह जिया
तुम्हें देख कर एक करुण शाम याद आयी
खग, मृग, मधुकर और शिलाओं से
प्रिया का पता पूछता
एक निर्वासित नायक याद आया ।