Last modified on 5 अप्रैल 2009, at 02:41

शादी भी हुई तो कवि से / शैल चतुर्वेदी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:41, 5 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैल चतुर्वेदी |संग्रह=चल गई / शैल चतुर्वेदी }} <poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमारे पड़ोसी लाला को
बड़ा घमंड था
अपने अलीगढ़ी तालों का
मगर छापा पड़ा
इंकमटैक्स वालो का
तो दो घण्टे में बाहर निकल आया
दाबा हुआ माल
कई सालों का
हमारी श्रीमती जी का
पारा चढ़ गया
बोलीं, "देखा
इंकमटैक्स वाले ने
हमारे घर की तरफ
देखा तक नहीं
और आगे बढ गया
जब से पड़ोसन के यहाँ
छापा पड़ा है
उसके आदमी का सीना
तन गया है
गिरी हुई मूँछे तलवार हो गई है
रेडियो पहले की अपेक्षा
ज़ोर से बजने लगा है
और लाला
हम लोगों को भुक्खड) समझने लगा है
कहता है-जिसके यहाँ
कुछ होगा ही नहीं
उसके यहाँ क्या पड़ेगा
हमारे यहाँ था
इसलिए पड़ गया
जिसके यहाँ कुछ नहीं था
उसके दरवाज़े से आगे बढ़ गया।"
हमने कहा-"लाला ठीक ही तो कहता है
हमारे पास है ही क्या
कविता है, कल्पना है
आँसू है, वेदना है
भावना है, छन्द है
चिंता है, अंतर-द्वन्द है
और ऊपर से
महंगाई के मारे हवा बन्द है