शादी भी हुई तो कवि से / शैल चतुर्वेदी
हमारे पड़ौसी लाला को
बड़ा घमंड था
अपने अलीगढ़ी तालों का
मगर छापा पड़ा
इंकमटैक्स वालों का
तो दो घण्टे में बाहर निकल आया
दाबा हुआ माल
कई सालों का
हमारी श्रीमती जी का
पारा चढ़ गया
बोलीं, "देखा
इंकमटैक्स वाले ने
हमारे घर की तरफ़
देखा तक नहीं
और आगे बढ़ गया
जब से पड़ौसन के यहाँ
छापा पड़ा है
उसके आदमी का सीना
तन गया है
गिरी हुई मूंछे तलवार हो गई हैं
रेडियो पहले की अपेक्षा
ज़ोर से बजने लगा है
और लाला
हम लोगों को
भुक्खड़ समझने लगा है
कहता है-जिसके यहाँ
कुछ होगा ही नहीं
उसके यहाँ क्या पड़ेगा
हमारे यहाँ था
इसलिए पड़ गया
जिसके यहाँ कुछ नहीं था
उसके दरवाज़े से आगे बढ़ गया।"
हमने कहा-"लाला ठीक ही तो कहता है
हमारे पास है ही क्या
कविता है, कल्पना है
आँसू है, वेदना है
भावना है, छंद है
चिंता है, अंतर-द्वन्द है
और ऊपर से
महंगाई के मारे हवा बन्द है
आई.टी.ओ. हमारे यहाँ आता
तो भला क्या पाता?
वे बोलीं : "तुम तो कवि हो न
आँसू को मोती
और वेदना को हीरा समझते हो
काश!
एन्कम्टैक्स वाले
हमारे यहाँ आते
तो तुम्हारे
हीरे और मोती तो पाते
नोटों की गड्डी न सही
लाख दो लाख
आँसू ही ले जाते।"
हमने कहा:"पगली!
किसी को हमारे आँसुओं से
क्या लेना देना
अगर आँसू भी
लेन देन का माध्यम हो गया होता
तो हमारे पास वो भी नहीं होता।
ग़रीब की आँखो की बजाय
तिज़ोरी में बन्द हो गया होता।
तिज़ोरी!
जिसमें बन्द है
लहलहाते खेत की मुस्कान
थके हारे होरी का पसीना
मजबूर धनिया का यौवन
सावन का महीना
सिसकती पायल की झंकार
भूकी और बेबस रधिया का प्यार
अनाथालय का चन्दा
और अपनी ही लाश ढोता हुआ
किसी गरीब बच्चे का कन्धा।"
वे बोलीं: "चुप हो जाओ
लाला के रेडिओ से
ऊँचा बोल रहे हो
रेडियो बिजली से चलता है
उसका क्या बिगड़ता है
तुम तो ब्लड प्रेशर के मरीज़ हो
अभी पसर जाओगे
फिर तुम जहाँ चीख़ रहे हो
वह कविता का मंच नहीं
तुम्हारे डेढ़ कमरे के शीश महल का
पलस्तर उखड़ा बरामदा है
ब्याह भी हुआ तो कवि से
भगवान जाने
क़िस्मत में क्या बदा है
इंकमटैक्स देने लायक भी नहीं। "