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तुमने कितनी क़समें खाईं याद करो / गोविन्द गुलशन

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तुमने कितनी क़समें खाईं याद करो
हम थे तुम्हारी ही परछाईं याद करो

फूल बहुत ख़ुशबू देते थे चाहत के
कलियाँ फिर कैसे कुम्हलाईं याद करो

पहले था ख़ामोश मुहब्बत का दरिया
लहरें फिर कैसी लहराईं याद करो

कितनी सुहानी थी वो रंगों की दुनिया
रातें फिर कितनी गहराईं याद करो

कितने वादे कितने इरादे थे दिल में
भूल गए तुम सब कुछ साईं याद करो