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यह पूछने पर / प्रेमशंकर रघुवंशी

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यह पूछने पर
वे और हम
साथ साथ
खेलते खाते रहे

पढ़ते रहे साथ साथ
साथ साथ
लड़ते-झगड़ते शरारतें करते रहे

साथ साथ
देते रहे फब्तियाँ
करते रहे प्यार साथ साथ

साथ साथ
लाँघते रहे पहाड़
तैरते रहे नदियाँ साथ साथ

सुख दुख, जीवन-मरण
सब कुछ
साथ-साथ रहा हमारा

फिर हम बड़े होने लगे
होने लगे व्यस्त तो वे
होते गये दूर हम से

इतने दूर इतने
कि एक दिन
उनके बाबत सुना
देखीं अखबारों में तस्वीरें उनकी
कि वे बारुद के जखीरों के साथ
गिरफ्तार हुए हैं
कुछ मारे गये मुठभेड़ में
और जब पूछा गया उनसे
तो उनने बताया कि वे
साथ रहना भूल चुके हैं आज कल

भूल चुके हैं
कि कभी-
साथ साथ रहे थे वे

ऐसा क्यों...??

यह पूछने पर वे
साथ साथ रहने वाले
दिनों को याद करते हुए
पीछे घूमकर
कुछ कहना चाहते हैं

फिर कुछ भी
कहने से पहले
चुप्प हो जाते हैं।